Wednesday, May 26, 2010

यह सब कुछ झूठ है?

योग और तर्कशास्त्र कहता है कि जिस ज्ञान का कोई प्रत्यक्ष नहीं वह विकल्प ज्ञान होता है। विकल्प अर्थात कल्पना, भ्रम और मिथ्‍या तर्क से ग्रस्त ज्ञान। आओ जाने की विकल्प ज्ञान क्या-क्या है:-

1. 'ईश्वर' है या नहीं है- यह सोचना या मानना मिथ्‍या ज्ञान है। अर्थात नास्तिकता और आस्तिकता दोनों ही उक्त श्रेणी में आते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि स्वर्ग और नर्क भी मिथ्या ज्ञान है।
2. खगोल शस्त्र को छोड़कर ज्योतिषीय अवधारणा तथ्‍य और तर्कहीन है विशेषकर फलित ज्योतिष, जो व्यक्ति के भाग्य और भविष्य को लेकर की गई भविष्यवाणियाँ या उपाय बताता है वे सब भ्रमपूर्ण है। कोई भी ग्रह-नक्षत्र किसी विशेष व्यक्ति के लिए उदय या अस्त नहीं होता। यह अकर्मण्य और भय से ग्रस्त मिथ्या ज्ञान जीवन के विरुद्ध माना गया है। उक्त ज्ञान में त्रुटियाँ हैं।
3. विक्रम, ईसा, बंगाली और हिजरी जैसे किसी भी संवत में 'समय' को नहीं बाँधा जा सकता। यह कौन तय करेगा कि आज से नववर्ष शुरू हुआ या‍ कि यह 2064, 2009 या 1314 है आदि। कैसे तय होगी कि धरती की तारीख वही हैं जो कि केलेंडर में लि‍खी होती है। सारे कैलेंडर मिथ्या ज्ञान से ग्रस्त हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि 21 मार्च को धरती सूरज का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है इस मान से धरती का नववर्ष 21 मार्च ही माना जाना चाहिए या नहीं?
4. जब हम कैलेंडरों के विरोधाभाष की बात करते हैं तो स्वत: ही अंक ज्योतिष का कोई महत्व नहीं रह जाता। मान लो यदि किसी की जन्म तारीख 21 मार्च है तो ‍विक्रम संवत अनुसार ‍कुछ और होगी तथा हिजरी संवंत अनुसार ‍कुछ ओर।
5. धर्म हैं सत्य का मार्ग न ही राजनीतिक हिंसा का मार्ग, जिस धर्म में राजनीति सिखाई जा रही है वह धर्म नहीं मिथ्‍या ज्ञान का हिस्सा है। दूसरों के खिलाफ खड़ा धर्म कैसे धर्म हो सकता है? यह तो शुद्ध राजनीतिक और आपराधिक चालाकी है।
6. कौन है जो तुमसे प्रेम करता है? यह मानना कि कोई तुमसे प्रेम करता है तब तक झूठ है जब तक कि तुम स्वयं से प्रेम करना नहीं सिख जाते। लोग सुंदरता से प्रेम करते हैं। धन से प्रेम करते हैं। गाड़ी से, बंगले से और आपकी महानता से प्रेम करते हैं आपसे नहीं।
7. हमारी भाषा में जो हम देखते हैं और जो हम सोचते हैं तो सोचे कि अलग-अलग भाषा के लोगों द्वारा सोची गई एक ही तरह की बात में भी समानता क्यों नहीं होती, क्योंकि भाषा हमारी 'सोच' को निर्मित करती है। भाषा से उपजी सोच, समझ और अनुभव हमारे ज्ञान का आधार नहीं होती। इसमें कई तरह की भ्रमपूर्ण उलझने हैं।
8. सोचें कि हम क्या सोचते हैं। हम मुसलमान हैं, हिंदू हैं, ईसाई हैं या सिख। हम सभी अपने अपने धर्म को महान, पवित्र और सच्चा धर्म मानते हैं। हमारी सोच का एक दायरा निर्मित हो जाता है। उस दायरे से बाहर निकल कर सोचना फिर हमारे बस का नहीं। तब माना जायेगा की हमारी सोच एक विशेष तरह का झूठ है। यह सिर्फ बुद्धि की कोटियों का भ्रमजाल है। जारी...